TCS की नई बेंच नीति: केवल 35 दिन का बेंच समय, कर्मचारियों का भविष्य क्या होगा?

मुंबई, 18 जून 2025 – टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), जो भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाता कंपनी है, ने एक नई ‘एसोसिएट डिप्लॉयमेंट पॉलिसी’ लागू की है, जो कर्मचारियों के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हो सकती है। इस नीति के अंतर्गत कर्मचारियों को साल में कम से कम 225 कार्य दिवसों तक बिल योग्य (billable) कार्य करना अनिवार्य होगा, और बेंच अवधि को सख्ती से 35 कार्य दिवसों तक सीमित कर दिया गया है। यह खबर आईटी उद्योग में तीव्र चर्चा का विषय बनी हुई है।

बेंच अवधि क्या होती है?

बेंच अवधि वह समय होता है जब कोई कर्मचारी किसी परियोजना में नियुक्त नहीं होता और मूलतः “खाली” होता है। पहले टीसीएस और अन्य आईटी कंपनियों में यह अवधि कई बार 6 महीने तक भी हो सकती थी। पर अब टीसीएस ने इसे केवल 35 कार्य दिवसों तक सीमित कर दिया है। अर्थात, यदि कोई कर्मचारी 35 दिनों से अधिक समय तक बेंच पर रहता है, तो उसके करियर, वेतन, पदोन्नति और विदेश में नियुक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

TCS की नई नीति के मुख्य नियम:

टीसीएस की यह नई नीति, जो 12 जून 2025 से प्रभावी हुई है, कर्मचारियों से अपेक्षा करती है कि वे सक्रिय रूप से ‘रिसोर्स मैनेजमेंट ग्रुप’ (RMG) के साथ जुड़ें और नए प्रोजेक्ट्स की खोज करें। बेंच पर रहने के दौरान, कर्मचारियों को प्रतिदिन 4 से 6 घंटे तक कौशल विकास के लिए समय देना अनिवार्य है, जिसके लिए iEvolve, Fresco Play, VLS और LinkedIn Learning जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा। इसके अलावा, टीसीएस के जनरेटिव एआई इंटरव्यू कोच का उपयोग भी अनिवार्य कर दिया गया है ताकि कर्मचारी इंटरव्यू के लिए तैयार रहें।

यह भी अनिवार्य किया गया है कि बेंच अवधि में कर्मचारियों की कार्यालय में उपस्थिति आवश्यक होगी। वर्क-फ्रॉम-होम केवल विशेष आपातकालीन परिस्थितियों में ही मान्य होगा, और इसके लिए RMG से पूर्व स्वीकृति लेनी होगी। यदि इन नियमों का पालन नहीं किया गया, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई, यहां तक कि नौकरी समाप्ति (termination) भी संभव है।

कर्मचारियों पर प्रभाव:

इस नीति का कर्मचारियों के करियर और जीवनशैली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। जो कर्मचारी 35 दिनों से अधिक समय तक बेंच पर रहेंगे, उनकी वेतन वृद्धि, करियर ग्रोथ और विदेश में नियुक्ति की संभावनाएं प्रभावित होंगी। टीसीएस ने यह भी स्पष्ट किया है कि बार-बार छोटे प्रोजेक्ट बदलने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाएगा और ऐसे मामलों में एचआर द्वारा विशेष जांच की जा सकती है।

एक ओर यह नीति कर्मचारियों को अपने कौशल को निरंतर अपडेट रखने और उत्पादक बने रहने के लिए प्रेरित करेगी, वहीं दूसरी ओर यह उन कर्मचारियों पर दबाव डाल सकती है जो प्रोजेक्ट ट्रांजिशन की स्थिति में हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (पूर्व ट्विटर) पर भी यह नीति काफी चर्चा में है, जहां लोग इसे “सख्त” और “गेम-चेंजिंग” कह रहे हैं।

टीसीएस की यह पहल आईटी उद्योग में एक बड़े परिवर्तन की ओर इशारा करती है। अन्य कंपनियां जैसे इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक भी अपने बेंच आकार को घटाकर 2-5% कर चुकी हैं, जो पहले 10-15% हुआ करता था। कर्मचारियों की उपयोगिता दर अब 80-85% के बीच है, और नौकरी छोड़ने की दर भी 11-13% तक कम हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति टीसीएस की लागत दक्षता और परियोजना आवंटन में तेजी लाने में मदद करेगी, हालांकि कर्मचारियों के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण दौर हो सकता है।

अपस्किलिंग और एआई की भूमिका:

टीसीएस का ध्यान अब कौशल विकास और एआई आधारित उपकरणों पर है। जो कर्मचारी बेंच पर हैं, उन्हें अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेना होगा और अपने कौशल को बाज़ार योग्य बनाए रखना होगा। जनरेटिव एआई इंटरव्यू कोच जैसे टूल्स उन्हें फीडबैक देते हैं और इंटरव्यू के लिए तैयार करते हैं। यह सब टीसीएस के उस विज़न को दर्शाता है, जिसके अंतर्गत वह एआई और ऑटोमेशन के साथ भविष्य के लिए तैयार कार्यबल बनाना चाहता है।

टीसीएस की नई बेंच नीति एक साहसिक कदम है, जो उत्पादकता और उत्तरदायित्व को बढ़ाएगी, लेकिन साथ ही कर्मचारियों के लिए नई चुनौतियां भी ला सकती है। 35 दिन की बेंच सीमा और 225 बिल योग्य दिनों का लक्ष्य कर्मचारियों को लगातार सक्रिय और दक्ष रहने के लिए प्रेरित करेगा। क्या यह नीति पूरे उद्योग के लिए एक नया मानक स्थापित करेगी? यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल, टीसीएस के कर्मचारियों को इस आईटी के नए युग में आगे रहने के लिए अपने कौशल और प्रयासों को और बेहतर बनाना होगा।

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